पास रह कर भी हम तुम कहीं ना रहे।
पास रह कर भी हम तुम कहीं ना रहे।।
साँस की डोरियाँ सुर सजाती रहीं
प्रीत का भाव ले गुनगुनाती रहीं
स्वप्न बुनती रहीं पुतलियाँ रात भर
नींद की पालकी वो सजाती रहीं।।
नींद पर रात भर हमको आयी नहीं
कहना चाहा मगर कुछ भी कह न सके
भाग्य रेखाओं ने दृश्य ऐसे गढ़े
पास रह कर भी हम तुम कहीं ना रहे।।
इक नए गीत की आस में सब सहे
काँटों से जो मिले दर्द सहते रहे
हर नई आहटें भाव बुनती मगर
जो लिखी पँक्तियाँ नीर में सब बहे।।
नीर ऐसे बहे कि रोक पाये नहीं
नीर का दर्द चाह कर भी कह ना सके
भाग्य रेखाओं ने दृश्य ऐसे गढ़े
पास रह कर भी हम तुम कहीं ना रहे।।
तुम कहो अब नया गीत कैसे रचूँ
जो छुये भावों को वो कैसे कहूँ
थी सहज कब यहाँ जिंदगी बिन तेरे
बात मन की बोलो मैं कैसे कहूँ।।
थी सहज कब यहाँ भावों की पालकी
कुछ ना कहते बना देखते बस रहे
भाग्य रेखाओं ने दृश्य ऐसे गढ़े
पास रह कर भी हम तुम कहीं ना रहे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12फरवरी, 2022
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