हृदय तुम्हारा साथ छोड़ दे विरक्त नहीं इतना मन है।।
उँगली पर जो दिवस गिने हैं
कैसे तुमको मैं बतलाऊँ
पल-पल जीवन कैसे काटा
है मुश्किल उसको समझाऊँ
पृष्ठों पर सब भाव उकेरे लिखा वही जो अपनापन है
हृदय तुम्हारा साथ छोड़ दे विरक्त नहीं इतना मन है।।
अवनी से अंबर तक मन ने
पग-पग नाम तुम्हारा लिखा
जब-जब पलकें खोली हमने
केवल रूप तुम्हारा दिखा
हिय ने जो भी भाव बुने हैं सबमें तेरा स्पंदन है
हृदय तुम्हारा साथ छोड़ दे विरक्त नहीं इतना मन है।।
नैन बसी है छवि तुम्हारी
जो कहो यहाँ मैं दिखलाऊँ
तुमसे मेरी साँस जुड़ी है
कैसे मैं तुमको अलगाऊँ
नित्य वचन में बंधा तुम्हीं से तुमसे सारे बंधन हैं
हृदय तुम्हारा साथ छोड़ दे विरक्त नहीं इतना मन है।।
अंतस के सब बंध तोड़ दो
निज भावों को बह जाने दो
रोको मत तुम आँसू अपने
पलकों से सब कह जाने दो
पिय रखो अंक में शीश, कहो, मन में अब कैसा मंथन है
हृदय तुम्हारा साथ छोड़ दे विरक्त नहीं इतना मन है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29अप्रैल, 2022
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