है दिया तुमने सवेरा।

है दिया तुमने सवेरा।  

पंथ से भटका हृदय जब
था प्रलय संकेत कोई
आह से विचलित हुआ हिय
चाह कर पलकें न सोईं
दृष्टिगोचर था यहाँ सब
पर नयन में था अँधेरा
इन दृगों में ज्योति बनकर
है दिया तुमने सवेरा।।

शब्द अधरों को दिये हैं
गीत से सुरभित किये हैं
भर दिये मुस्कान पथ में
साज से सज्जित किये हैं
जो भरा नव रंग हिय में
हो वही सुंदर चितेरा
इन दृगों में ज्योति बनकर
है दिया तुमने सवेरा।।

अब नहीं अनजान जग से
पंथ से परिचित हुआ मन
संग तेरा है मधुर यूँ
साज से सज्जित हुआ मन
नवगीत की तुम पंक्ति हो
छंद का पावन बसेरा
इन दृगों में ज्योति बनकर
है दिया तुमने सवेरा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21अप्रैल, 2022

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