नव-संवत्सर।
पूजहीं धरम मिलहिं अशीषा
भाँति-भाँति है ज्ञान प्रसारा
चहुँ दिस होहिं धरम विस्तारा।।
सब हिय पनपहिं प्रेम पुनिता
हर हिय बसहिं राम अरु सीता
लिखहिं पढ़हिं सब होयहिं ज्ञानी
सत्य सनातन जुग-जुग विज्ञानी।।
चहुँ दिस हर्ष उलास मन गाई
प्रेम प्रसार होहिं जग माहीं
कष्ट मिटे हो सज्जन शीला
मन मोहहि सब देह सुशीला।।
राम कथा सुनि मन हरषाये
रोग दोष सब दूर भगाये
काम क्रोध मद मोह मिटे जब
पुण्य प्रवाहित जग में हो तब।।
जीवन सुखद सुफल बन जाये
हरषि-हरषि मन पुनि-पुनि गाये
शुद्ध हृदय मन-चित ले गावहिं
राम कृपा आजीवन पावहिं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02अप्रैल, 2022
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