क्या मेरी आवाज तेरी आवाज तक जाती नहीं।

क्या मेरी आवाज तेरी आवाज तक जाती नहीं।  

क्यूँ कर जिंदगी इस मोड़ से उस मोड़ तक जाती नहीं
क्या मेरी आवाज तेरी आवाज तक जाती नहीं।।

कहने को तो दिवारों के कान होते हैं सुना है
जाने दर्द की आवाज फिर उस पार क्यूँ जाती नहीं।।

कहो बादलों ने कब छुपाई रोशनी जो आ रही
क्यूँ फिर इस मकाँ से उस मकाँ तक रोशनी जाती नहीं।।

ये पैर भी थकने लगे जब मंजिलें गुमनाम हों
फिर रास्तों की क्या खता जो दूर तक जाती नहीं।।

इक अदावत ने न जाने कितने घर-बेघर किये हैं
पर न जाने दोष उस पर क्यूँ मढ़ी जाती नहीं है।।

कितने दीपक बुझ गये हैं इस गरीबी से यहाँ पर
कहो मुफलिसी फिर कटघरे में क्यूँ कभी जाती नहीं।।

मुड़ के देखे वक्त अब फुरसत कहाँ इतनी सफर में
शायद उम्र से लंबी सड़क है, आवाज अब जाती नहीं।।

अब खुदा भी पत्थर सा हुआ जाता है शायद "अजय"
लगता है कि अरदास कोई अब उस तक जाती नहीं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       19मार्च, 2022

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