कुछ अभिव्यक्ति अभी बाकी है।
फिर भी जाने क्यूँ लगता है अभिव्यक्ति अभी भी बाकी है।।
मन के प्रतिबिम्बों में कितने
भाव छुपाये बैठे सारे
प्रतिपल छाँव बदलते लेकिन
उम्मीदों के पथ कब हारे
प्रतिबिम्बों में घुलता जीवन छाँवों का संदेश दे रहा
फिर भी जाने क्यूँ लगता है अभिव्यक्ति अभी भी बाकी है।।
आस समेटे अनुमानों के
अंतर्मन की अँगनाई में
पग पग डग डग दूर चल रहे
पीछे पीछे परछाईं के
मिली सांत्वना अनुमानों से पलकों में संकेत दे रहा
फिर भी जाने क्यूँ लगता है अभिव्यक्ति अभी भी बाकी है।।
जब भी दीपक जला आस का
अकुलाहट सी नयन कोर पर
आशायें तब पंख पसारीं
संभाव्यों के मृदुल छोर पर
अभिलाषाएँ अभिसारित हैं उम्मीदें संकेत दे रहीं
फिर भी जाने क्यूँ लगता है अभिव्यक्ति अभी भी बाकी है।।
मिलने को तो मिल जाता है
आहों को आराम एक दिन
पलकों के ताखों पर ठहरे
सपनों को विश्राम एक दिन
रुके भाव बन शब्द अधर पर गीतों का संकेत दे रहे
फिर भी जाने क्यूँ लगता है अभिव्यक्ति अभी भी बाकी है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18फरवरी, 2022
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