है कठिन अब मेल साथी।
मौन संशय में बदल कर
प्रश्न का आश्रय बदल कर
अब न कर तू खेल साथी
है कठिन अब मेल साथी।।
घन सघन है धूम्र बनकर
कह रहे हैं अश्रु गिरकर
चुभ गये पल वो पलक में
अश्रु के बने रेख साथी
है कठिन अब मेल साथी।।
दामिनी तड़की वहाँ तब
काँपती धरती वहाँ तब
मेघ भटके तर बतर से
थे प्रलय संकेत साथी
है कठिन अब मेल साथी।।
आह थी उठती लहर में
घाव था हर इक पहर में
चल पड़े तम के सफर में
रो रही है रात साथी
है कठिन अब मेल साथी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14मार्च, 2022
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