तूफानों में घिरा भले मन
झंझावत हों कदम-कदम पर
अवसादों के बीच भले हो
या विपदायें कदम-कदम पर
अपने वश में मन को कर ले बिखर नहीं जाने दो
ये आँसू पावन गंगाजल हैं व्यर्थ नहीं बह जाने दो।।
यादों के झुरमुट में उलझे
सपनों के पनघट पर ठहरे
पंथ ताकती गीली नजरें
जाने कौन राह फिर ठहरे
पलकों के निज कोर सँभालो व्यर्थ नहीं झर जाने दो
ये आँसू पावन गंगाजल हैं व्यर्थ नहीं बह जाने दो।।
अब धीर धर लो तुम हृदय में
अरु मुस्कुराकर मौन साधो
है भाव में जो प्रेम संचित
उसको आँचल में तुम बाँधो
आँसुओं से कब दीप जलता अब नैनों को समझाने दो
ये आँसू पावन गंगाजल हैं व्यर्थ नहीं बह जाने दो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
20अप्रैल, 2022
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