एक बूँद-निजता के पल का दर्द।
और निजता के पलों के चैन भी सब ले गयी।।
क्या कहें अब शब्द खुलकर और क्या आवाज दें
खोई खोई जिंदगी को अब कहो क्या साज दें
तुम कहो थी चीज क्या हमको दगा जो दे गयी
और निजता के पलों के चैन भी सब ले गयी।।
रात की गुमनामियों में साँझ का पल खो गया
बादलों के बीच जैसे चाँद जाकर खो गया
गा सके न गीत कोई एक कसक सी रह गयी
और निजता के पलों के चैन भी सब ले गयी।।
कुछ घाव हैं दिल पर लगे चाहा पर न कह सका
अरु घाव के उस दर्द को चाहा बहुत, न सह सका
दर्द की वो टीस मन पर बोझ कितने दे गयी
और निजता के पलों के चैन भी सब ले गयी।।
फिर रहा हूँ, अकेले मैं यहाँ तन्हाइयों में
खोजता हूँ स्वयं को स्वयं की परछाइयों में
था न जाने कौन सा पल आह दब कर रह गयी
और निजता के पलों के चैन भी सब ले गयी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01मार्च, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें