मन के सूनेपन को भाये
ऐसा गीत चलो रच जायें।।
ऐसा गीत चलो रच जायें।।
व्यर्थ नहीं हो जाये जीवन
मन का आँगन तन का उपवन
जगना रातों को घुट घुट कर
लिखना पलकों का सूनापन
पलकों के सूना मिट जाये
ऐसा गीत चलो रच जायें।।
सुनना जग की बातों को क्यूँ
जिनका कुछ आधार नहीं है
चलना उन राहों पर क्यूँकर
जिनसे कुछ व्यवहार नहीं है
नयी राह जो स्वयं बनाये
ऐसा गीत चलो रच जायें।।
दूर क्षितिज पर अपनी मंजिल
साथ-साथ चलना जब हमको
दूजे से नादान रहें क्यूँ
पग-पग मिलना है जब हमको
उपालंभ जग के त्यज जायें
ऐसा गीत चलो रच जायें।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09मार्च, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें