नारी।
भावों उद्गारों में मोहित
नारी तुम जग की आशा हो
नभ-तल की पुण्य जिज्ञासा हो।।
प्रतिपल अमृत का दान किया
अमरत्व सुयश प्रतिदान किया
तुमने जीवन के पग पग में
निज आशा का बलिदान दिया।।
तुम देवों की अमृत वाणी
तुम गंगा का निरमल पानी
तुम भाव प्रवण अनुशासन हो
तुम नैतिकता का शासन हो।।
जीवन के इस कुरुक्षेत्र में
पग-पग पर चलता युद्ध रहा
कितनी ही घड़ियाँ ऐसी थीं
अंतस में नित्य विरुद्ध रहा।।
जीवन के भोजपत्र पर किन्तु
बस मृदु गीतों का गान लिखा
वेदों की सभी ऋचाओं ने
भी नारी का सम्मान लिखा।।
आँचल में आँसू के बदले
निज भाव मुखर रखना होगा
तुमको जीवन के संधिपत्र पर
अब प्रखर भाव लिखना होगा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08मार्च, 2022
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