मन की वीणा।

मन की वीणा।   

संध्या के निज सूने पल में एकाकी हो चले हृदय जब
कहती है मन की वीणा तब खुद से ही तुम बातें कर लो।।

भावों के सागर में जब जब
लहरों का तूफान मचा हो
नैनों के कोरों पर जब जब
जीवन का अरमान रुका हो
नहीं किनारा भावों को जब लहरों से समझौता कर लो
कहती है मन की वीणा तब खुद से ही तुम बातें कर लो।।

नदिया की धाराओं पर जब
कश्ती ये मचले अकुलाकर
ताने दे जब तीर नदी का
शब्द चुभे कानों में आकर
लहरों के फिर साथ बहो तुम नदिया से समझौता कर लो
कहती है मन की वीणा तब खुद से ही तुम बातें कर लो।।

अनायास जब लगे मचलने
भाव नजर की परछाईं में
विधना भी जब लगे बदलने
सहसा मन की अँगनाई में
अनुमानों से दूर निकलकर भावों से समझौता कर लो
कहती है मन की वीणा तब खुद से ही तुम बातें कर ले।।


©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       19फरवरी, 2022

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...