पिय बसंत ऋतु बड़ी सुहानी।
मुस्कुरा रही डाली डाली कह रही कुछ ये पवन।।
तार गूँजे हैं हँसी के खिल गया संसार सारा
पंछियों के मृदु स्वरों से गूँजता आकाश सारा
हो गईं हैं मदमस्त देखो आज सारी वादियाँ
लगता धरती पर है उतरा झूम कर स्वर्ग सारा।।
लिख गये नवगीत पथ पथ खिल रहे सभी अंतर्मन
पिय बसंत ऋतु ये बड़ी सुहानी खिल गये धरती गगन।।
नेह पलकों से झरे अधरों पे नवल मुस्कान है
देखो प्रकृति के अंक ने पाई नई पहचान है
उच्च शिखरों से चमकता ये सूर्य भी कुछ कह रहा
पंछियों के कलरवों में सब गूँजते गुणगान हैं।।
हुई धरा पुलकित बहुत केसर सम रंगे वन सघन
पिय बसंत ऋतु ये बड़ी सुहानी खिल गये धरती गगन।।
ठहरे हैं जो शब्द अधरों पर उन्हें अब बोल दो
मन के भावों को ना रोको वक्त है ये खोल दो
कह दो मन की बात सारी अब मौन ऐसे न रहो
जो किसी से न कही हो वो बात खुलकर के कहो।।
चलो हम गायें गीत ऐसा पुण्य हो जाये मिलन
पिय बसंत ऋतु ये बड़ी सुहानी खिल गये धरती गगन।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04फरवरी, 2022
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