बूँद गिर कर कह गये।

बूँद गिर कर कह गये।   

नीर पलकों से मचलकर बूँद बनकर झर गये
कह न पाये जो अधर ये बूँद गिर कर कह गये।।

छुप गया सूरज क्षितिज पर मौन है सब रश्मियाँ
बस थके हारे कदम के रह गये थोड़े निशाँ
चल पड़े फिर मौन पथ पर दूर कितना पर गये
कह न पाये जो अधर ये बूँद गिर कर कह गये।।

यादों के पृष्ठों में था पुष्प मुरझाया हुआ
सूखी थी पत्तियाँ अरु भाव कुम्हलाया हुआ
थे मुखर पर भाव अब भी जो बिखर कर रह गये
कह न पाये जो अधर ये बूँद गिर कर कह गये।।

कलियों से सुरभित रहा मृदु अश्रु जीवन का यहाँ
स्मृतियों में अब तक अमिट हैं गीतों की सब पंक्तियाँ
कुछ शब्द आहों से सजे कुछ आह में मिट गये
कह न पाये जो अधर ये बूँद गिर कर कह गये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08फरवरी, 2022




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