खुशियों की गागर।
दिनकर भी मुस्काया है
पंछी ने आवाज लगायी
सूरज सर चढ़ आया है
चलें निकलकर पनघट तक हम
अब कैसी ये दूरी है
राहें अपनी एक यहाँ जब
फिर कैसी मजबूरी है।।
शाखों पर नव पुष्प खिले हैं
कलियाँ भी मुस्काई हैं
पुरवा के झोंके भी हमतक
नव संदेशा लायी हैं
सुनो गा रही सभी दिशायें
गाते कँगना चूड़ी है
राहें अपनी एक यहाँ जब
फिर कैसी मजबूरी है।।
भोर तटों पर मिले रात दिन
जीवन नव राग सुनाये
पंछी के कलरव में सुन लो
जीवन संगीत समाये
खुशियों से भर लें अब गागर
बस थोड़ी सी दूरी है
राहें अपनी एक यहाँ जब
फिर कैसी मजबूरी है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09फरवरी, 2022
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