दो बूँद प्रीत की छलकाओ।

दो बूँद प्रीत की छलकाओ।  

बहुत कह चुका अपनी बातें
तुम भी तो कुछ बात सुनाओ
भावों के गहरे सागर से
दो बूँद प्रीत की छलकाओ।।

उल्लासित लहरें सागर की
इक बूँद तरंगित धारा हूँ
आसमान में अनगिन तारे
माना मामूली तारा हूँ।।

तारों के भी रूप सुनहरे
ये चंदा को भी बतलाओ
भावों के गहरे सागर से
दो बूँद प्रीत की छलकाओ।।

बीत रहा पल पल ये जीवन
कहीं क्रंदन कहीं है गायन
कहीं बंद जीवन कोठर में
कहीं खुला मन का वातायन।।

सुख-दुख, क्रंदन अरु गायन का
जीवन में उद्देश्य बताओ
भावों के गहरे सागर से
दो बूँद प्रीत की छलकाओ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09मार्च, 2022


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