मधुर निशा के इस पल में काश नेह तुम्हारा मिल जाता।।
पलकों के कुछ स्वप्न सजीले
अधरों पर आए हैं खुलकर
जैसे प्यासा पनघट आए
उम्मीदों की गागर सिर धर।।
काश कि पनघट पर प्यासे को शीतल जलधारा मिल जाता
मधुर निशा के इस पल में काश नेह तुम्हारा मिल जाता।।
चली चाँदनी धीरे-धीरे
तारों ने भी पंथ सजाये
मद्धिम-मद्धिम पौन चल रही
पावस ऋतु सा मन अकुलाए।।
बूँदें गिरती काश गात पर जीवन ये सारा मिल जाता
मधुर निशा के इस पल में काश नेह तुम्हारा मिल जाता।।
व्याकुल मन के भाव सँभाले
पलक चाँद की ओर तक रही
मन के पृष्ठों पर कुछ लिखकर
बार-बार कुछ बात कह रही।।
मेरी भग्न कुटी खिल जाती जो साथ तिहारा मिल जाता
मधुर निशा के इस पल में काश नेह तुम्हारा मिल जाता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16मई, 2022
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