मानव मन।

मानव मन।  

निज भावों के महिसागर में
मानव मन नित झूल रहा है
जीवन ये बहती धारा है
लगता पल-पल भूल रहा है।।

आज यहाँ कल कहाँ ठिकाना
क्या खोया था जो फिर पाना
कौन रुका है इस जगती में
इक दिन सबको ही है जाना।।

जब सबका परिणाम सुनिश्चित
क्यूँ किंतु-परन्तु में झूल रहा है
निज भावों के महिसागर में
मानव मन नित झूल रहा है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05अप्रैल, 2022

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