मन की सारी कह लेता।
मन की सारी कह लेता
सुन लेता जी भरकर तुमको
और दर्द सभी सह लेता
कुछ पल रात ठहर जाती तो
मन की सारी कह लेता।।
अंतिम प्रहर रात का देखो
रह रह कर के पिघल रहा
तारों से आच्छादित नभ में
मन का चंदा मचल रहा
दूर कहीं टूटे तारे की
मन की पीड़ा सुन लेता
कुछ पल रात ठहर जाती तो
मन की सारी कह लेता।।
सोते क्या जब रात जाग कर
श्वेत धुँए से भर डाली
लेकिन पलकें बंद रात भर
की सपनों की रखवाली
करती रहीं प्रतीक्षा वो तो
बस थोड़ा तो रह लेता
कुछ पल रात ठहर जाती तो
मन की सारी कह लेता।।
निशि भर भाव पलक पर बैठीं
आशायें यूँ मँडराती
थकी उदासी धीरे धीरे
काश हृदय को छू पाती
छू पाती जो हृदय कभी तो
आहों में भी रह लेता
कुछ पल रात ठहर जाती तो
मन की सारी कह लेता।।
बुझी राख की यादें लेकर
रात सिमटने को आतुर
आकाशों को देख रहीं अब
बोझिल पलकें हो व्याकुल
व्याकुलता के भाव सभी ये
काश हृदय ये सह लेता
कुछ पल रात ठहर जाती तो
मन की सारी कह लेता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06फरवरी, 2022
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