तुम कहो अगर सुना दूँ मैं।

तुम कहो अगर सुना दूँ मैं।  

मन में उमड़ रहे भावों को आशाओं के भोजपत्र पर
जितने गीत लिखे हैं मैंने तुम कहो अगर सुना दूँ मैं।।

मैंने अपनी पलकों पर
कुछ स्वप्न सजाये हैं अब भी
मैंने अपने अधरों पर
कुछ गीत सजाये हैं अब भी
उन गीतों की धाराओं में तुम कहो अगर बहा लूँ मैं
जितने गीत लिखे हैं मैंने तुम कहो अगर सुना दूँ मैं।।

गूँज रहे हैं शब्द तुम्हारे
कानों में मधु घोल रहे 
ऐसा लगता भाव मचल कर
मन का आँचल खोल रहे
अपने मन के मृदु आँचल में तुम कहो अगर समा लूँ मैं
जितने गीत लिखे हैं मैंने तुम कहो अगर सुना दूँ मैं।।

भावों की धरती पर कब तक
गीत अकेले गाऊँगा
तुम जो साथ नहीं होंगे तो
कैसे खुद को पाऊँगा
अपने मन के साथ तुम्हारा मन कहो अगर मिला लूँ मैं
जितने गीत लिखे हैं मैंने तुम कहो अगर सुना दूँ मैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      16फरवरी,2022




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