आया है नूतन सवेरा।
तम की गहरी रेख काली
खो गयी थी बादलों में
सांध्य की उजली वो लाली
पर मिटा है तब अँधेरा
तम की जब चादर हटी है
देख प्राची की दिशा से
आया है नूतन सवेरा।।
खो गयी थी रोशनी भी
रात की चादर थी गहरी
या भरम था मौन मन का
जिस पे जाकर बात ठहरी
पर खुले तब मौन मन के
प्राची से जब पौ फटी है
धुंध मन के चीरने को
आया है नूतन सवेरा।।
रात भर जिन प्रहरियों की
पलकें ना सोई न जागी
आस थी पल-पल नयन में
नींद लेकिन कब वो माँगी
पर मिला है तब सहारा
दूरी नयनों की मिटी है
मौन साँसें पूजने को
आया है नूतन सवेरा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13अप्रैल, 2022
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