हृदय का अनलिखा भाव।।
मैं हृदय का वही अनलिखा भाव हूँ।।
थरथराती रहीं उँगलियाँ रात भर
नयन के नीर ठहरे अधर चूम कर
मेज पर पृष्ठ बिखरे इधर औ उधर
मैं उसी मेज का अनदिखा भाव हूँ
उँगलियाँ पृष्ठ पर लिख न पायीं जिसे
इस हृदय का वही अनलिखा भाव हूँ।।
यादों के झील में है कैसी लहर
छटपटाती रही तितलियाँ रात भर
रोक पाया नहीं मैं जिसे चाह कर
बिछड़े उस चाह का मौन प्रभाव हूँ
उँगलियाँ पृष्ठ पर लिख न पायीं जिसे
इस हृदय का वही अनलिखा भाव हूँ।।
मौज से जो किनारे गए हैं बिछड़
स्वप्न पलकों से जो गये हैं बिखर
कहे अनकहे गीत रुके अधरों पर
अनकहे गीत का मैं तो स्वभाव हूँ
उँगलियाँ पृष्ठ पर लिख न पायीं जिसे
इस हृदय का वही अनलिखा भाव हूँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22मई, 2022
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