मन गुंजित हो उठा गगन में
मृदु भावों ने मोह लिया
अब परवाह यहाँ क्या करना
सही किया या गलत किया।।
पुष्पित हो मन मृदुल पलों में
हिय में ऐसे आन बसो
पिय स्वर मधुरिम हो अधरों के
मन वीणा के तार कसो।।
क्या खोऊँ क्या पाऊँ जग में
मुझको कुछ परवाह नहीं
जग केवल मेरे गीत सुने
रत्ती भर भी चाह नहीं।।
तुमसे पर सब राग सजे हैं
साँसों में यूँ आन बसो
पिय स्वर मधुरिम हो अधरों के
मन वीणा के तार कसो।।
जगती का पथ कठिन, अकेला
मौन पंथ कब तक चलता
कब तक पलता संकेतों पे
कब तक मन खुद को छलता।।
आलिंगन भर लो भावों को
पलकों में फिर आन बसो
पिय स्वर मधुरिम हो अधरों के
मन वीणा के तार कसो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30मार्च, 2022
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