दीपक के मनोभाव।

दीपक के मनोभाव।  

दीपक जब भी जला यहाँ पर
दुनिया को बस ताप दिखा है।।

लौ की ताप सभी ने देखी
पर बाती को कब है जाना
जिसको तुमने जलना समझा
सच वो ही उसका मुस्काना
राख हुई जलकर वो बाती
न चेहरे पर संताप दिखा
दीपक जब भी जला यहाँ पर
दुनिया को बस ताप दिखा है।।

जीवन के घुप अँधियारों ने
सच, मेरा मान बढ़ाया है
लेकिन जैसे हुआ सवेरा
फूँक मार मुझे बुझाया है
आभारी हूँ अँधियारों का
जिसने मेरा मान रखा है
दीपक जब भी जला यहाँ पर
दुनिया को बस ताप दिखा है।।

है मुझको मालूम यहाँ पर
कोई नहीं किसी का साथी
दीपक तब तक ही जलता है
जब तक जलती उसकी बाती
पल-पल जलते दीपक में पर
बाती को सम्मान दिखा है
लेकिन दीपक जला यहाँ जब
दुनिया को बस ताप दिखा है।।

अपनी तो किस्मत में जलना
जल कर भी आकाश सजाया
मैने पग-पग जीवन पथ पर
तम को पथ से दूर हटाया
हाँ, खुश हूँ बुझने से पहले 
अधरों पर मुस्कान दिखा है
क्यूँ कर के अफसोस करूँ अब
दुनिया को जो ताप दिखा है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02मई, 2022

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