मेरे मन को नीर छलता है।
गीत नहीं बस, भाव हृदय का पग-पग संग-संग चलता है
बूँद-बूँद बन कर पलकों से नीर मेरे मन को छलता है।।
अनुवादों में घुली जा रही कितनी अमिट कहानी बोलो
अहसासों में मिली जा रही सपनों की रजधानी बोलो
सपनों की रजधानी में कुछ डंक हृदय को खलता है
बूँद बूँद बन कर पलकों से नीर मेरे मन को छलता है।।
जीवन के प्रतिपल में हमने फैलायीं हैं अपनी बाहें
प्रतिपल सबसे न्याय किया है सम्पद हो या हो विपदाएँ
जाने फिर भी कसक हृदय में पल पल क्यूँ कर पलता है
बूँद बूँद बन कर पलकों से नीर मेरे मन को छलता है।।
निज पलकों ने कब चाहा है अश्रु गिरें अकारथ बह जायें
अधरों ने कब चाहा बोलो शब्द कंठ में दब रह जायें
पैबंद लगे भावों में बोलो रिश्ता कब तक चलता है
बूँद बूँद बन कर पलकों से नीर मेरे मन को छलता है।।
कहीं दिलासा कोई होता, निज भाव हृदय के कह पाता
कोई रखता शीश अंक में मेरे भावों को सहलाता
लम्हों के कुछ शब्दों से, शायद घाव हृदय के भर जायें
सदियों से बस यही भाव मन की गलियों में पलता है
बूँद बूँद बन कर पलकों से नीर मेरे मन को छलता है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03मार्च, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें