प्रीत का व्यवहार देखूँ।
प्रीत का व्यवहार देखूँ।।
इस जगत के पुण्य पथ पर
चल रहा इक आस लेकर
दूर तक जाते हुई इस
पंथ पर विश्वास लेकर
नैन, जिनके पल रहे हैं
स्वप्न जीवन के मृदुलतम
उन सभी पलकों पर सदा
जीत का आकार देखूँ
है नयन की चाह जग में
प्रीत का व्यवहार देखूँ।।
सोचता हूँ मैं जगत में
द्वेष, छल है क्यूँ घृणा है
मनुज मन में त्रास कैसा
मद मोह में क्यूँ पड़ा है
है हृदय पर भार कैसा
और कैसा पल विकटतम
हो घड़ी कितनी विकटतम
पुण्य का सत्कार देखूँ
है नयन की चाह जग में
प्रीत का व्यवहार देखूँ।।
जब जगत में पुण्य अगणित
फिर कहो कैसे टलूँ मैं
छोड़ कर उस पंथ को फिर
तुम कहो कैसे चलूँ मैं
पल रहा नव भाव प्रतिपल
ले आस मन में पुण्यतम
पुण्य हो जीवन सफल हो
स्वप्न को साकार देखूँ
है नयन की चाह जग में
प्रीत का व्यवहार देखूँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11अप्रैल, 2022
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