मौन भला क्यूँ कर रहना।

मौन भला क्यूँ कर रहना।  

गीत मुखर हों जब अधरों पर
मौन भला फिर क्यूँ कर रहना।।

अब तक जीवन भटका-भटका
घूम रहा था भूला-भूला
जैसे कोई भटका राही
अपने मंजिल का पथ भूला
पर शीतल छाया मिल जाये
घने ताप में फिर क्यूँ रहना
गीत मुखर हों जब अधरों पर
मौन भला फिर क्यूँ कर रहना।।

कहीं शोर हो कहीं शांति हो
मन के भीतर कहीं भ्रांति हो
बूँदें पलकों पर हो ठहरे
या यादों के सागर गहरे
मन के भीतर शोर बहुत हो
अरु पलकों से चाहे बहना
तब भावों से नेह लगा लो
मौन भला फिर क्यूँ कर रहना।।

धन्य हुआ उपहारों से मैं
संवादों में तुमने बाँटे
धन्य हुआ मेरा मन पाकर
तुमसे कंटक छल अरु काँटे
तुमसे कितना कुछ पाया है
अफसोस यहाँ फिर क्या करना
तुम पर अब ये गीत निछावर
मौन भला फिर क्यूँ कर रहना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05मई, 2022



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...