सांध्य जब घूँघट पट खोले।।
हँस कर बोला दिवस आज का
बीता हर पल थका-थका सा
कितनी राहें नापी पग ने
लगता फिर भी रुका-रुका सा
रुके पंथ हौले से बोले
सपनों को आलिंगन ले ले
सांध्य जब घूँघट पट खोले।।
डूबे मन क्यूँ सघन गगन में
जब है हल्की छुअन पवन में
मन का पपिहा प्यासा कैसा
आन बसे जब सपन नयन में
सपन सुहाने द्वार खड़े हो
पलकों को धीरे से खोले
साँध्य जब घूँघट पट खोले।।
गीतों में जहँ भरा समंदर
अवनी-अंबर मिले जहाँ पर
जहँ मन गाये गीत मनोहर
भावों का पथ खिले वहीं पर
जहाँ हृदय सम्मोहित होकर
मन से मन की बातें बोले
सांध्य जब घूँघट पट खोले।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18अप्रैल, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें