पलकों से ही कह देना।

पलकों से ही कह देना।  

मुझको अपने दर्द का तुम बस इक टुकड़ा ही दे देना
जो दर्द सहा न जाये तुमसे पलकों से ही कह देना।।

जग के बहुतेरे फेरे कहाँ चलेंगे कहाँ रुकेंगे
खुद को भी मालूम नहीं लहरों के पग कहाँ रुकेंगे
लहरों ने जो पंथ चुना अविरल बहते जाना उसपर
ये अविरल पथ जीवन में अनुमानों के गीत रचेंगे।।

गीतों में जो भाव बुने मुस्काना अरु कह देना
जो दर्द सहा न जाये तुमसे पलकों से ही कह देना।।

उम्मीदों ने गीत लिखे हैं तारों की परछाईं में
चली चाँदनी आस ओढ़कर सपनों की अँगनाई में
मन को अपने आज मना लो ऋतुओं में रम जाओ तुम
खोल हृदय के द्वार बहो उन्मुक्त यहाँ पुरवाई में।।

मधुमासों के गीत सभी तुम अहसासों में कह देना
जो दर्द सहा न जाये तुमसे पलकों से ही कह देना।।

मुझको अपना भाव बना लो या मुझमें घुल जाओ तुम
मुझको मिलने दो खुद से या मुझमें ही मिल जाओ तुम
दूर रहें फिर गीत नहीं, जो अधरों पर हैं सजे यहाँ
शब्द बनूँ मैं जो गीतों का भाव यहाँ बन जाओ तुम।।

अपने गीतों के भावों में मुझको तुम रख लेना
जो दर्द सहा न जाये तुमसे पलकों से ही कह देना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24फरवरी, 2022

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...