हृदय के भाव सारे बोल दो।
प्रिय आज हृदय के भाव सारे बोल दो।।
पाप क्या पुण्य क्या इस धरा पे तुम कहो
है प्रेम क्या औ क्या घृणा तुम ही कहो
जो लिखे हैं ग्रन्थ में या जगत का चलन
मुक्त है ये पल के मन की तुम भी कहो।।
भर के नयनों में मृदुलतम भाव अपने
आज बंद पलकों के किनारे खोल दो
भर के मेरे गीत में कुछ शब्द अपने
प्रिय आज हृदय के भाव सारे बोल दो।।
है तुम्हारे नैन में जो स्वप्न सारे
उन को मैं साकार करना चाहता हूँ
जो कुछ रची है आकृति तुमने हृदय में
उनको मैं आकार देना चाहता हूँ।।
चाहता हूँ जिंदगी में हों रंग जितने
जिंदगी में वो रंग सारे घोल दो
भर के मेरे गीत में कुछ शब्द अपने
प्रिय आज हृदय के भाव सारे बोल दो।।
मैंने कब कहा कि देवता बन कर रहूँ
मैंने कब कहा है दर्द जगती के सहूँ
इतना बस एलान करना चाहता हूँ
ज्योति बनकर दिल में जलना चाहता हूँ।।
छोड़ कर के मन के सारे भ्रांतियों को
अब हिय के अपने द्वार सारे खोल दो
भर के मेरे गीत में कुछ शब्द अपने
प्रिय आज हृदय के भाव सारे बोल दो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15मई, 2022
देवता भी उस जगह
चाहता हूँ तूलिका में रंग भरो तुम
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