दुख में सुख को पलते देखा।

विनय दान।

नव किसलय नव पुष्प।

नारी- सब सह लेती है।

फागुन का रंग।

तूफानों का आदी हूँ।

पहचान।

साथ तुम्हारा।

मुस्कानों का साथी।

कैसे गाऊँगा।

सफर।

काशी।

गंगा के उस पार।

पहचान।

आम की बालियाँ।

प्रीत ने पंथ निखारा।

देव दर्शन।

अपनापन।

नई सुबह नई भोर।

मजबूरी।

सम्मान कइसे मिली।

स्वयं का विस्तार कर।

कभी मानूँगा ना हार।

रंगमंच।

मौन पीड़ाएँ।

मनमीत।

मौन अब खोल दो।

दर्द।

ऐसे कैसे रहते हो।

आँखों की बातें।

इतिहास बनाने आया हूँ।

इशारा।

जीवन अविरल बहता रहता।

*सफर को कोई नाम दें।*
इस खामोशी को जुबान दें
आओ इसे कुछ आयाम दें
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफ़र को अब कोई नाम दें।।
कब गुजरीं लम्हों में सदियाँ
अभी तलक ये पता ना चला
यूँ तो मिलते रहे हम सदा
खुद से अभी तक ना मैं मिला।
चलो खुद से मिलें दोनों
एक दूजे को कुछ नाम दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफर को अब कोई नाम दें।।
यूँ चले कितनी हसरत लिए
आशाओं के जलाए दिए
कल लिखे थे जो गीत हमने
तिरे होठों ने उनको छुए।
चलो फिर से सारे गीतों को
मिलकर के अपनी जुबान दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
साफर को अब कोई नाम दें।।
न तेरी ख़ता न मेरी ख़ता
हुआ कुछ मगर किसे है पता
अब भी दिलों में थोड़ी कसक
तुझे ये पता मुझे भी पता।
चलो आज फिर, वहीं पर मिलें
एक दूजे को ईनाम दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफर को अब कोई नाम दें।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22फरवरी, 2021

सफर को कोई नाम दें।

तुम आज गवाही देना।

गान ऐसा दीजिए।

कर्तव्यों की देहरी।

एक उम्मीद।

कदमों के निशान।

सीमित साधन में सपने।

गीतों में जीवन।

उम्र का सफर।

कह दो तो बतलाऊँ मैं।

शोक क्या करना।

तुमने सुन लिया।

आमंत्रण।

बात अभी भी बाकी है।

मेरे मन की कब समझोगे।

सुलगती आशाएँ।

मैंने जीना सीख लिया।

तेरा प्यार अब दवा हो गया।

यूँ ही धुँआ नहीं होता।

हाय करूँ क्या रुसवाई।

पथिक सँभल कर चलना तुम।

गीत सुनाने आ जाना।

हथेली पर गुलाबी अक्षर।

आघात।

माँ गंगे।

माँ गंगे।

कलम से प्रार्थना।

शौर्य गाथा।

जीवन की गाथा।

प्रभु मिलन की आस।

अहसास।

जीवन जीना एक कला है।

खुद को समझाने बैठा हूँ।

थोड़ा रूमानी हो जाएं।

उम्मीद।

आगे बढ़ कर के रहूँगा।

इकरार करता हूँ।

कभी यूँ ही।

भाव तड़पते देखा है।

राष्ट्र वंदन।

मौलिक उन्मेष।

मौन अभिव्यक्ति।

कैसी फैली है लाचारी।

नूतन अभियान लिए।

ठौर चाहिए लोकतंत्र को।

प्रीत के आँगन में।

हम आहों में भी गाते हैं।

आ अब लौट चलें।

पुरुषार्थ अनुसरण करो।

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