आगे बढ़ कर के रहूँगा।
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।
कर्तव्य पथ पर चल पड़ा हूँ कंटकों का मुझे भय नहीं
मार्ग हो दुष्कर भले चंहुओर खंदक मुझे भय नहीं।
हूँ पथिक जिस पंथ का उस पंथ पर चल कर के रहूँगा
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।
जनम मरण का मोक्ष द्वार जीवन इच्छाओं की धरती
संयोग प्रयोग की भूमि, व्यंजनाओं का अवलोकन करती।
भावों का ये प्रस्फुटन, भावों में ढल कर के रहूँगा
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।
नीति, नैतिकता, नियम सब मेरे पथ के हैं सहचर
दृढ़-प्रतिज्ञा सत्य समागम पूण्य पन्थ के हैं अनुचर।
भावप्रवण विश्वास प्रबल मोक्ष तक चल कर के रहूँगा
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19जनवरी, 2021
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