मौन अभिव्यक्ति।

मौन अभिव्यक्ति।  

कल्पनाओं के व्योम पर
कितनी इच्छाएं हैं ठहरी
शब्द अधरों पर ठहर कर
मौन बन बैठे हैं प्रहरी।

व्याकरण को दोष देकर
वाक्य को हरपल सजा दी
और इसकी पृष्ठभूमि में
कितनी भाषाएं मिला दी।

अभिव्यक्ति की सीमाओं पर
नजरें वो जा कर के ठहरीं।
शब्द अधरों पर ठहर कर
मौन बन बैठे हैं प्रहरी।।

और तुमसे क्या कहूँ मैं
जाने स्वप्न थे क्या क्या यहाँ
बन के साधक जब चला मैं
आये कितने अवरोधन यहाँ।

सेज सपनों की सजी जब
यामिनी की नींद गहरी।
शब्द अधरों पर हैं ठहरे
मौन बन बैठे हैं प्रहरी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       12जनवरी, 2021




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