रंगमंच।
सबका है अपना अभिनय
संवाद कहीं है मौन कहीं
सबका है अपना परिचय।
पात्र, पात्रता, आवश्यकता
पग पग पर मंचन होती है
जिसकी जैसी यहाँ भूमिका
वैसी ही अंकन होती है।
सबके अपने पात्र सुनिश्चित
धर्म कर्म है सबका संचय।
संवाद कहीं है मौन कहीं
सबका है अपना परिचय।।
वचनबद्धता, भाव, प्रार्थना
सब इच्छाओं में चिन्हित हैं
औ अंतस की समग्र कामना
प्रत्यक्ष यहाँ पर प्रतिबिंबित है।
इच्छाओं की मधुर कल्पना
हिय संबंधों का है मधुमय ।
संवाद कहीं है मौन कहीं
सबका है अपना परिचय।।
रुपहले पर्दे पर चित्रित
सबकी अपनी भाव भंगिमा
जिसकी जैसी प्रस्तुति है
वैसी बनती उसकी गरिमा।
भावों की प्रस्तुति से होता
सबके जीवन में अरुणोदय।
संवाद कहीं है मौन कहीं
सबका है अपना परिचय।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
05मार्च, 2021
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