गंगा के उस पार।
गंगा के उस पार मुझे
सब सपनों की छोर दिखी है
गंगा के उस पार मुझे।।
छिटक छिटक कर सूर्य रश्मियाँ
जल थल पर क्रीड़ा करती
नित नूतन संदेशों से वो
मन में भाव प्रवणता भरतीं।
उम्मीदों की कोर दिखी है
गंगा के उस पार मुझे।
जीवन की इक डोर दिखी है
गंगा के उस पार मुझे।।
भीतर है तूफान समेटे
ऊपर, पर शांत लहर है
पल पल छिन छिन बीत रही
सिमटाये मौन प्रहर है।
शांत लहर की पोर दिखी है
गंगा के उस पार मुझे।
जीवन की इक डोर दिखी है
गंगा के उस पार मुझे।।
साँझ ढले जीवन बेला में
घाटों पर इक हलचल है
नवजीवन की उम्मीदों से
निशा जागती पल पल है।
पुनर्जन्म की भोर दिखी है
गंगा के उस पार मुझे।
जीवन की इक डोर दिखी है
गंगा के उस पार मुझे।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21मार्च, 2021
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