नई सुबह नई भोर।
भोर रश्मि की मुस्कानों से
वरदानों की डोर जुड़ी है
हँस कर जब भी देखा मैने
नई सुबह की भोर दिखी है।।
दूर क्षितिज से किरण प्रभाती
उम्मीदें बनकर आती
अपने स्वर्णिम अहसासों से
मन में मधुरिम भाव जगाती।
मधुरिम मधुरिम अहसासों में
नूतन सपनों की छोर दिखी है।
हँस कर जब भी देखा मैंने
नई सुबह नई भोर दिखी है।।
शीतल चंदा की किरणों ने
रातों का श्रृंगार किया है
रजनी के नीले आँचल को
तारों ने गुलजार किया है।
खिली चाँदनी की किरणों में
प्रेम की सुंदर डोर दिखी है।
हँस कर जब भी देखा मैंने
नई सुबह नई भोर दिखी है।।
सुंदर मन के व्यवहारों से
खुशियों की कलियाँ खिलती हैं
मन में जैसा भाव यहाँ हो
वैसी ही दुनिया मिलती है।
मन की सुंदरता से देखा
खुशियों की इक डोर दिखी है।
हँस कर जब भी देखा मैंने
नई सुबह नई भोर दिखी है।।
मैंने जीवन के हर इक पल को
हँसकर के सम्मान दिया है
सोम समझ कर गरल पिया है
नहीं कभी अपमान किया है।
जीवन के हर पल में मुझको
अमृत की रसधार दिखी है।
हँस कर जब भी देखा मैंने
नई सुबह नई भोर दिखी है।।
मेरा प्रण है इस जीवन को
ऐसे ही गाता जाऊँगा
जीवन के हर पहलू में मैं
ऐसे ही हँसता जाऊँगा।
मुस्कानों में हरपल मुझको
साँसों की नव डोर दिखी है।
हँस कर जब भी देखा मैंने
नई सुबह नई भोर दिखी है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14मार्च, 2021
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