मनमीत।

मनमीत।   

मेरे मन के मीत बनो तुम
मैं प्रीत तुम्हारी बन जाऊँ
शब्द बनूँ मैं गीत बनो तुम
संगीत तुम्हारी बन जाऊँ।।

अधरों पर हो प्रेम का अंकन
उर में मधुर मधुर स्पंदन
अंक में भर लूँ स्वप्न तुम्हारे
जीवन ये हो जाये नंदन।

मुक्त गगन की मीत बनो तुम
मैं प्रीत तुम्हारी बन जाऊँ।
शब्द बनूँ मैं गीत बनो तुम
संगीत तुम्हारी बन जाऊँ।।

संवादों में गीत मधुर हो
अहसासों में प्रीत मधुर हो
शब्द शब्द में थिरकन जागे
नई तरंगें, रीत मधुर हो।

नई रीत की गीत बनो तुम
मैं प्रीत तुम्हारी बन जाऊँ।
शब्द बनूँ मैं गीत बनो तुम
संगीत तुम्हारी बन जाऊँ।।

ताप तरंगें इस जीवन को
रह रह कर झुलसाती हैं
जाने कितने भाव हृदय को
रह रह कर हुलसाती हैं।

मेरे अंतस की मीत बनो तुम
मैं प्रीत तुम्हारी बन जाऊँ।
शब्द बनूँ मैं गीत बनो तुम
संगीत तुम्हारी बन जाऊँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03मार्च, 2021

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