एक उम्मीद।
ओढ़ चली असमानी चादर
थके कदम, पर चले राह में
भरने कुछ सपनों की गागर।
कहे-अनकहे उनके किस्से
व्यवहारों में झलक रहे हैं
फ़टी एड़ियाँ, तप्त पसीने
कदम कदम पर छलक रहे हैं।
पनियायी आँखों में अब भी
सीमित सपनों की गहराई
संग संग उसके राह चली
उम्मीदों ने ली अँगड़ाई।
चेहरों की मुस्काती सिलवट
सुना रही अनसुनी कहानी
सूरज ढल कर भले छुप गया
ढली नहीं उम्मीद सुहानी।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13फरवरी, 2021
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