सफर।
यूँ ही तुम मुझमें मैं तुझमें
चलो मिलकर कुछ खोजते हैं
चलो कुछ सपने देखते हैं।।
कुछ मैं तुमको बतलाऊँ
कुछ तुम मुझको समझाना
कुछ मैं तुमको दिखलाऊँ
कुछ तुम मुझको बतलाना।
वक्त की दहलीज पर हम
एक दूजे को खोजते हैं
चलो कुछ सपने देखते हैं।।
एक उम्र चली है राहों पर
थामे दूजे की बाहों को
इस धड़कन से उस धड़कन तक
थामे दूजे की साँसों को।
थामे साँसों की वही डोर
चलो बाहों में भींचते हैं
चलो रिश्तों को सींचते हैं।।
दूर क्षितिज तक चलें साथ मे
राह मुड़े तो मुड़े साथ में
अस्तांचल तक चलना है
भोर खिले जब खिले साथ में।
सूर्योदय से अस्तांचल तक
उम्र को दरीचों में देखते हैं
चलो कुछ सपने देखते हैं।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22मार्च, 2021
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