मैंने जीना सीख लिया।

मैंने जीना सीख लिया।   

मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया
अंतस के सारे घावों को
मैंने सीना सीख लिया।

स्वप्न जीवन के बहुत थे
पर ध्वस्त कितने हो गए
कुछ राह को मंजिल मिली
अभ्यस्त कितने हो गए।

बनते बिगड़ते स्वप्न को
मैंने सीना सीख लिया।
मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया।।

वक्त ही सब सर्जना है
औ वक्त ही संजीवनी
वक्त ही अनुमान सारे
औ वक्त ही चेतावनी।

वक्त के अमृत गरल सब
मैंने पीना सीख लिया।
मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया।।

कुछ रंग जीवन के चुने
कुछ कल्पना किरणावली
पर क्या करूँ हालात का
जो दे गए प्रश्नावली।

प्रश्नावली के प्रश्न में
मैंने जीना सीख लिया।
मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       03फरवरी, 2021

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