मुस्कानों का साथी।
अब मुझको बस पाना है।
आशाओं ने करवट बदली
उम्मीदों ने राह पकड़ ली
सपनों को इक पंथ मिला
विश्वासों ने अँगड़ाई ली।
मुक्त पंख आकाश खुला है
दूर क्षितिज तक जाना है।
खोने को क्या पास हमारे
अब मुझको बस पाना है।।
गिरने का कहीं भय नहीं
तारों से बातें करता हूँ
अपनी हर इच्छाओं से
झोली हर खाली भरता हूँ।
आशाओं के संयोजन तक
पल पल पलते जाना है।
खोने को क्या पास हमारे
अब मुझको बस पाना है।।
बहुत किया पछतावा अब तक
अब कोई अफसोस नहीं
बीती सारी बातों पर अब
मुझको कोई रोष नहीं।
मुस्कानों का साथी हूँ मैं
मुस्कानों तक जाना है।
खोने को क्या पास हमारे
अब मुझको बस पाना है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25मार्च, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें