राष्ट्र वंदन।

  राष्ट्र वंदन।   

हिमशिखरों से छनकर दिनकर
प्रतिदिन जिसे जगाती है
पहनाकर हीरक हार जिसे
नवजीवन राग सुनाती है।

रश्मि किरण हैं जिसका चंदन
उषा काल करती खुद वंदन
अपना भारत पुण्य धरा वो
पग पग जीवन, कण कण नंदन।

नदियाँ इसकी जीवन धारा
मन निर्मल कोमल तन सारा
निर्झर मीठा राग सुनाते
प्रकृति ने है रूप निखारा।

खेतों खलिहानों में भारत
नित नूतन गीत सुनाती है
धरती पर मुस्कान बिखेरे
जन गण मन हरषाती है।

ऋषि मुनि वीरों की धरती
विद्वानों देवों की धरती
ज्ञान, ध्यान योगों की जननी
गीता, वेद, पुराणों की धरती।

ऊँचे पर्वत जहाँ शीश नवाये
सागर जिसका चरण पखारे
नीति, नियम नैतिकता खातिर
दुनिया जिसकी ओर निहारे।

ऐसा है अपना भारत
जिसपर हमको अभिमान सदा 
जियें मरें बस इसकी खातिर
प्रभु हमको दो वरदान सदा।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      15जनवरी, 2021








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