अपनापन।
फिर से उसको कौन मिलाए
भटक गये जो कभी मूल से
उसे मूल से कौन मिलाए।।
सुखद सपन सी लगती दुनिया
नई नवेली दिखती दुनिया
चमक दमक के पीछे लेकिन
एकाकी सी कितनी दुनिया।।
जीवन के एकाकीपन को
अपनापन ही दूर भगाए
भटक गये जो कभी मूल से
उसे मूल से कौन मिलाए।।
मतभेदों में जला उजाला
मनभेदों ने निगला जीवन
जाने कैसे पवन चल रही
उजड़ा जाता हरपल जीवन।।
निज जीवन के अनुमानों ने
अहसासों को दूर भगाए।
भटक गये जो कभी मूल से
उसे मूल से कौन मिलाए।।
विखर गए कितने ही उपवन
अहंकार के तूफानों में
बिछड़ गए कितने ही जीवन
हीनभाव वश अनुमानों में।।
ऐसे अनुमानों के कारण
जीवन पल पल ठोकर खाये।
भटक गये जो कभी मूल से
उसे मूल से कौन मिलाए।।
सफर सुहाना लगता तबतक
जबतक अपने साथ चले हैं
पग-पग खुशियाँ मिलती तबतक
उम्मीदों के फूल खिले हैं।।
अपनेपन की उम्मीदें ही
जीवन को नव राह दिखाए।
भटक गये जो कभी मूल से
उसे मूल से कौन मिलाए।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15मार्च, 2021
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