कैसी फैली है लाचारी।
वर्तमान से भेद है भारी
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।
कहते हैं सब सेवक खुद को
पर सेवा का मोल लगाते हैं
कहीं उठी जब बात कभी
बस मुद्दों से भटकाते हैं।
लोकतंत्र तब मंद हुआ जब
सुविधाएं मुद्दों पर भारी।
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।
सुविधाओं की जन्नत में औ
अट्टहासों के बीच खड़े हैं
कैसा रुदन कैसा क्रंदन
चिंताओं में कौन पड़े हैं।
चिकनी चुपड़ी सड़कें अब
पगडंडी पर पड़ती भारी।
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।
आगे बढ़ना ही जीवन है
पर कदमों पर ध्यान करो
स्वप्निल जीवन की खातिर
कल का ना अपमान करो।
कल आज और कल का चक्कर
सारे रिश्तों पर है भारी।
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12जनवरी, 2021
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