यूँ ही धुँआ नहीं होता।

यूँ ही धुँआ नहीं होता।  

कुछ वजह रही होगी कोई यूँ ही जुदा नहीं होता।
कुछ आग लगी होगी वरना यूँ ही धुँआ नहीं होता।।

यूँ तो हर कोई अब रहता है खफा एक दूजे से
शायद अब सबके दिल में पहले सा खुदा नहीं होता।।

यूँ तो हर दफा दोष शमा का ही नहीं होता यारों
कुछ कसक रही होगी यूँ परवाना फना नहीं होता।।

ना जाने कितनी ही आहों का असर फिजाओं में है
वरना शाखों से वो पत्ता यूँ ही जुदा नहीं होता।।

कोई मतलब नहीं महज साथ रहने से यहाँ तब तक
जब तक की दिल से दिल तक का कोई वास्ता नहीं होता।।

कुछ तो वजह रही होगी सर झुकाने की किसी दर पर
कभी भी कोई यूँ ही तो यहाँ पर खुदा नहीं होता।।

कोई तो चोट गहरी ही लगी होगी दिल पर यारों
वरना कभी कोई यूँ ही यहाँ बेवफा नहीं होता।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01फरवरी, 2021



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