मजबूरी।

मजबूरी।   

मेरे औ मंजिल के बीच
बस थोड़ी सी दूरी है
तुमको क्या बतलाऊँ मैं
मेरी क्या मजबूरी है।

मौन पंथ का मूक पथिक हूँ
उम्मीदों ने पाला मुझको
जीवन पथ के तूफानों ने
अपनेपन में ढाला मुझको।

निकल गया सब तूफानों से
पर थोड़ी सी दूरी है
तुमको क्या बतलाऊँ मैं
मेरी क्या मजबूरी है।।

जी करता है सपनों में मैं
अपने हरपल गीत सजाऊँ
तुम सम्मुख प्रतिपल बैठो
अविरल मैं  गाता जाऊँ।

मेरे गीतों की महफ़िल में
तेरी मुस्कान जरूरी है।
तुमको क्या बतलाऊँ मैं
मेरी क्या मजबूरी है।।

उम्मीदों ने रात ओढ़ ली
पर मैंने स्वीकार किया
दिए तुम्हारे सब घावों को
मैंने तो हर बार जिया।

कहने को मैं भी कह देता
पर चुप रहना भी जरूरी है।
तुमको क्या बतलाऊँ मैं
मेरी क्या मजबूरी है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       12मार्च, 2021

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