प्रभु मिलन की आस।
मैं ना सोती ना जगती हूँ
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।
हृदय भक्ति का भाव लिए
बस तुमको ही ध्यान किया
छोड़ चुकी सब नेह प्रलोभन
बस तेरा अनुमान किया।
उन अनुमानों को अपनी
उँगली पर मैं गिनती हूँ।
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।
भटक नहीं जाये मन मेरा
खुद से नाता तोड़ लिया
तुम में खो जाने की खातिर
तुमसे नाता जोड़ लिया।
सांझ ढले जीवन बेला में
भोर सुहानी तकती हूँ।
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।
जन जन के मन में प्रभु मेरे
मधुर मनोहर भाव जगाना
लोभ मोह प्रतिघात रोष के
दूषित भाव दूर हटाना।
कर जोड़े प्रभु चरणों में
मैं स्वयं समर्पित करती हूँ।
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22जनवरी, 2021
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