कभी यूँ ही।
कभी यूँ ही निकल जाया तू कर।
बारिशों की इस दलदली जमीन पर
कभी यूँ ही कहीं मचल जाया तू कर।
खुद को इतना बचाने का क्या फायदा
कभी धूप में यूँ ही निकल जाया तू कर।
चाँद माना कि तुझसे बहुत दूर है
कभी तो कहीं मचल जाया तू कर।
वो चाँद मुझसे माना बहुत दूर है
कभी मेरा चाँद बन आया तू कर।
दर्द तो दर्द है, ये बहुत अनमोल है
यूँ ही आँखों से न बहाया तू कर।
ज़िंदगी तेरी यूँ ही खिल जाएगी
बस यूँ ही कभी मुस्कुराया तू कर।
लौटना है तुझे सभी जानते हैं ये
लौटने को सही कभी आया तू कर।
दिल मिले ना मिले अब ये जरूरी नहीं
नफरतों से सही नजर मिलाया तू कर।
जिंदगी रास्तों का सुहाना सफर
कभी यूँ ही निकल जाया तू कर।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16जनवरी, 2021
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