गान ऐसा दीजिए।
पीत वसन ओढ़ रही
प्रीत का मधुर प्रभाव
गात गीत छेड़ रही।
ऋतु बसंत आ रही
भावों को लुभा रही
पुष्प पुष्प प्रीत बनी
मधुमय बन पिला रही।
खेत की ये क्यारियाँ
सरसों की बालियाँ
पीत रंग रँगी चुनर
धरती लहलहा रही।
पुष्प नूतन खिल रहे
नवपात वृक्ष खिल रहे
दूर क्षितिज मुक्त भाव
धरती गगन मिल रहे।
आज कामनाओं को
उड़ान नई दीजिए
भावना में प्रेम हो
गान ऐसा दीजिए।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15फरवरी, 2021
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