पहचान।

पहचान।  

इस आभासी दुनिया में तुम
प्रिय मेरी मुस्कान बने हो
नजर नजर में डगर डगर में
तुम मेरी पहचान बने हो।।

धूप छाँव के सफर घनेरे
शाम तुम्हीं हो तुम्हीं सवेरे
अभिलाषा के शीर्ष तुम्हीं
प्रेम पंथ ने पुष्प बिखेरे।

प्रेम पथिक मैं जिन राहों का
तुम उसकी वरदान बने हो।
नजर नजर में डगर डगर में
तुम मेरी पहचान बने हो।।

तुम शीतलता की परिभाषा
चाँद चाँदनी की अभिलाषा
तुम नैनों की दिव्य ज्योति हो
तुम अधरों की कंपित आशा।

मेरे मन की इस वीणा के
मदिर मधुर सुर तान बने हो।
नजर नजर में डगर डगर में
तुम मेरी पहचान बने हो।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        26मार्च, 2021 


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